Friday, August 27, 2010

देहातीपन

भारत वर्ष गावं गरीब और किशानो का देश है , क्योकि देश की ८०% आबादी देहात में निवास करता है,और २०% आबादी तक ही सारी सिमट कर रह गयी है। स्वतंत्रता के बाद देश में गरीबी का जो आकलन था, आज कम होने के बजाय और बढ़ गयी है। जिसके पीछे क्या कारन हो सकता है, यह गंभीर चिंतन का विषय है। जो उपलब्धि भारत गिना रहा है क्या वह गावं ,गरीब और किशानो तक सही मायने में पहुच पा रहा है। यदि ये संभव हो पता तो गरीबी रेखा के निचे जीवन यापन करने वालो की जन्शंख्या बढ़ने के बजाय कम होती। इसके पीछे अशिक्षा और जन्शंख्या ब्रिधि भी महत्वा पूर्ण तथ्य है। ये स्थिति में क्यों का जवाब प्रचुर शिक्षा और शिक्षा प्रणाली में सुधर होनी चाहिए । और जन्शंख्या नियंत्रण में ध्यान देना होगा।
आज प्रशासन में बैठे नुमयन्दे सिर्फ योज्नावो का फरमान जारी करते है, केवल एमलिजामा पहना कर पेश किया जाता है। क्या इनका अमल गावं, गरीब और किशानो तक पहुच पता है। आज हमें आर्थिक आजादी के साथ समानता पर गौर करना होगा और आम स्तर पर पुनर मुल्यांकन करने की आवश्यकता है।
भारत देश की आत्मा गावं में बसता है और आज गावों की स्थिति काफी दयनीय है। देहातीपन या गावं के जीवन स्तर को सुधारने kइ लिए अभी काफी कार्य करने होंगे । सर्वा प्रथम देहातो को आवागमन के साधन से जोड़ना होगा, जिसके माध्यम से जनसंपर्क बढेगा किशान अपने उत्पादन का सही मूल्याङ्कन कर पाएंगे। इसके बाद महत्वपूर्ण मुद्दा है की वह सतत शिक्षा के साथ संचार क्रांति के लिए जन आन्दोलन करना पड़ेगा। इसके लिए देहातो पर सेवा चालू करे जिससे गावं में गरीब और किशान उच्च तकनिकी कों समझ सके और आधुनिक कृषि पर आधारित उत्पादन कर पाए । किशानो के उत्पादन पर किसी भी प्रकार का टेक्स आदि नहीं होना चाहिए। आज पश्चमी सभ्यता का प्रभाव मूल संश्कृति कों नष्ट कर रही है। भारत अपनी संश्कृति के नाम से जाना जाता रहा है परन्तु एस ओर झुकाव कम ही है एश पर पूर्ण रूप से नियंत्रण होना चाहिए। समग्र विकाश के लिए उत्पादन के साथ-साथ स्वस्थ मानसिकता की भी आवश्यकता है। शिक्षित होने के लिए सतत शिक्षा कार्यक्रम चलाना चाहिए .ग्रामीण स्टार पर सामुदायिक चिकात्शालय हों , ग्रामीण चक्र कों सुधरने जीवन शैली में तभी परिवर्तन होगा जब उनका सही मूल्याङ्कन होगा । इसके लिए वन , खनिज, का मलिकाना हक़ हो जिशसे अपना जीवन स्टार सुधर सके। आज रोटी, कपडा और आवश मुलभुत आवश्यकता है, यदि ये तमाम आवश्यकता पूर्ण होती है तभी सह्रिपन में समंजश्य हो पायेगा .यदि गावं में अपराध होता है तो इसकी रोकथाम के लिए गावं में ही सुरक्षा समिति हो और प्रत्येक गावो में ग्राम न्यालय आदि का स्थापना होना चाहिए।
भारत वर्ष में संगठित क्षेत्र का समुचित विकाश की परिकल्पना से छोटे-छोटे राज्यों का गठन किया गया है जिसे पिछड़ा राज्य जैसे झारखण्ड, आसाम, नागालैंड, मिजोरम, छात्तिश्गढ़ आदि। छत्तीसगढ़ के बारे में कहा जाता है आमिर धरती में गरीब लोग निवाश करते है। जबकि छोटे राज्यों में नदी,नाला,खनिज सम्पदा, वन भूमि आदि से आच्छादित है। पर इनका सही मायने में यहाँ के मूल निवासी दोहन नहीं कर प् रहे है जिसका परिणाम राजस्वा में कमी है । प्रसासनिक खर्च में अधिक व्यय किया जाना भी पिचादे पण का करारण
है। छोटे राज्यों में जब तक पर्दार्शिकता पूर्वक कार्य नहीं होंगे और सैट-प्रतिसत शिक्षित नहीं होंगे। तब तक विक्सिसित नहीं हो सकता । जो पिछड़े राज्यों की श्रेणी में आता है उनका मूल कारन है शिक्षा,स्वाश्थ्य, बेरोजगारी ,स्थानीय लोगो कों कार्य मिल सके एसे कार्य-योजना का आभाव,खनिज आदि का रायल्टी स्थानीय निकाय में नहीं जाना ;बिजली का आभाव आदि प्रमुख कारन हो सकते है तभी पिछडो का ककयां हो सकता है।
डॉ आनंद राम मतवाले (गुरूजी)